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भारत की प्राचीन संस्कृति और आधुनिक समृद्धि के बीच सेतु है हिंदी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिल रही नई पहचान

हिंदी भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी।’

हिंदी भाषा भारतीय परंपरा, जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक है। यह भारत की प्राचीन संस्कृति और आधुनिक समृद्धि के बीच एक सेतु का काम करती है। विविधताओं से भरे देश भारत को एकता के सूत्र में पिरोने में हिंदी की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। वैश्वीकरण, डिजिटलीकरण और सोशल मीडिया के मौजूदा युग में देश ही नहीं, दुनिया भर में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। भारत से बाहर रह रहे भारतीय समुदाय के करोड़ो लोग संपर्क भाषा के रूप में हिंदी का प्रयोग करते हैं। दुनिया में 175 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा पढ़ाई जा रही है। इन सबसे अंतरराष्ट्रीय स्‍तर पर हिंदी को निरंतर नई पहचान मिल रही है।

लोकतंत्र में सरकार और जनता के बीच संपर्क को सशक्त बनाने में भाषा की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। इस निर्णय को महत्व देने और हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य के साथ वर्ष 1953 से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी संघ की राजभाषा होने के साथ ही 11 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान के भाग 17, अनुच्छेद 351 में कहा गया है कि राजभाषा हिंदी को इस तरह विकसित किया जाये कि वह भारत की विविध संस्कृति को अभिव्यक्त करने में सक्षम हो। 

यदि हम चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र गतिशील हो और जनहित की योजनाओं के बारे में जनता को जागरूक किया जाये, ताकि उनका ज्यादा-से-ज्यादा लाभ जनता तक सुचारु रूप से पहुंचे, तो संघ के कामकाज में हिंदी और राज्यों के कामकाज में स्थानीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देना जरूरी है। साथ ही, हिंदी भाषा में शिक्षित युवाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध हो, इस दिशा में भी प्रयास करने की जरूरत है। ऐसा करके ही देश की प्रगति में ग्रामीण आबादी और युवाओं सहित सबकी भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।

जरूरी यह भी है कि जनता के साथ संवाद में आम बोलचाल के सरल शब्दों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाये। आजादी के साढ़े सात दशक बाद भी ज्यादातर सरकारी दस्तावेजों में ऐसे शब्दों के प्रयोग धड़ल्ले से हो रहे हैं, जिनके प्रति आम लोगों में व्यापक जागरूकता नहीं है। उदाहरण के लिए भूमि एवं राजस्व विभाग की शब्दावली को देखा जा सकता है। अप्रचलित शब्दों के प्रयोग के कारण ही जमीन से संबंधित दस्तावेजों की बारीकियों को ज्यादातर लोग नहीं समझ पाते हैं और धोखाधड़ी के शिकार हो जाते हैं।

भाषा वही जीवंत और सशक्त होती है, जिसका प्रयोग आम जनता करती है। आइए, हिंदी दिवस पर दैनिक कामकाज एवं व्यवहार में हिंदी को अपनाने तथा सरल हिंदी के प्रचार-प्रसार में योगदान देने का संकल्प लें।

हिंदी दिवस पर विशेष

The writer is Senior Editor, Bureaucrats India.